Bandha Coal Block विवाद: बिना मुआवजा और पुनर्वास के भूमि पूजन पर जनता में रोष

लेखक: सोनू पाल

सिंगरौली, 29 जुलाई 2025।

मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में स्थित Bandha Coal Block एक बार फिर विवादों में घिर गया है। मंगलवार को इस क्षेत्र में उस वक्त हंगामे की स्थिति बन गई जब निजी कंपनी और प्रशासन की ओर से बिना किसी पूर्व सूचना, मुआवजा वितरण या पुनर्वास की प्रक्रिया के अचानक भूमि पूजन कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम के दौरान भारी पुलिस बल की तैनाती कर दी गई और बाउंड्री वॉल निर्माण का कार्य भी आरंभ कर दिया गया।



Bandha Coal Block में ग्रामीणों की पीड़ा: मुआवजा और पुनर्वास से पहले भूमि अधिग्रहण

Bandha Coal Block क्षेत्र के प्रभावित ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि उनके खेत और मकान जिस जमीन पर हैं, वहां कंपनी जबरन कब्जा कर रही है। ग्रामीणों का कहना है कि आज तक न उन्हें मुआवजा दिया गया है और न ही किसी प्रकार की पुनर्वास योजना लागू की गई है।

Bandha Coal Block के ग्रामीण लोगों ने बताया की , “हमारे पुरखों की जमीन है ये हम खेती करके पेट पालते हैं, लेकिन आज बिना बताये कंपनी वाले आकर जमीन पर झंडा गाड़ दिए। पूछने पर कहते हैं कि अब ये जमीन सरकार की हो चुकी है।”


भूमि पूजन से पहले कोई अधिसूचना नहीं, न ही जनसुनवाई

ग्रामीणों का कहना है कि भूमि पूजन और निर्माण से पहले न तो कोई अधिसूचना जारी की गई, न ही ग्राम सभा की बैठक बुलाई गई। यह साफ तौर पर भारतीय संविधान और भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 की धारा 4(1) का उल्लंघन है, जिसमें स्पष्ट प्रावधान है कि अधिग्रहण से पहले जनसुनवाई और ग्राम सभा की अनुमति आवश्यक है।


Bandha Coal Block: क्षेत्र का भूगोल और महत्व

Bandha Coal Block सिंगरौली जिले में स्थित है, जिसे भारत सरकार द्वारा कोयला खनन के लिए आवंटित किया गया है। यह क्षेत्र खनिज संसाधनों से भरपूर है और यहां कई कंपनियों की नजरें वर्षों से टिकी रही हैं। बताया जा रहा है कि इस ब्लॉक को EMIL (Essel Mining and Industries Limited) को आवंटित किया गया है, जो अदानी समूह से भी जुड़ी हुई कंपनी मानी जाती है।

यह ब्लॉक हजारों ग्रामीणों की आजीविका का आधार है। यहां की आबादी मुख्यतः कृषक है और जंगलों पर निर्भर करती है। ऐसे में अगर यह भूमि खनन के लिए ली जाती है, तो हजारों परिवार उजड़ जाएंगे।



कंपनी की तानाशाही: ना रोजगार, ना मुआवजा — सिर्फ छलावा

Bandha Coal Block परियोजना से प्रभावित ग्रामीणों का कहना है कि कंपनी न तो उन्हें कोई रोजगार दे रही है और न ही मुआवजे की राशि पारदर्शिता से वितरित की जा रही है। अधिकांश परिवारों को पूरी तरह नजरअंदाज़ किया गया है और वे आज भी अपने भविष्य को लेकर असमंजस में हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन और कंपनी के बीच मिलीभगत से उन्हें गुमराह किया जा रहा है। कई लोग वर्षों से इसी जमीन पर रह रहे हैं लेकिन उन्हें न तो विस्थापितों की सूची में शामिल किया गया और न ही कोई सूचना दी गई।

स्थानीय लोगों का कहना है कि कई बैठकें और कागजी वादे तो किए गए, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कुछ भी नहीं हुआ। मुआवजे के नाम पर अभी तक किसी को कोई रकम नहीं दी गई, केवल ग्रामीणों को धमकी देकर भू अर्जन का काम किया जा रहा है। जो लोग सवाल उठाते हैं, उन्हें धमकाया जाता है या झूठे वादों में उलझा दिया जाता है।

कंपनी द्वारा किए गए वादे और वास्तविकता में बड़ा अंतर है। ग्रामीणों का कहना है कि नौकरी की बात तो दूर, उनके बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और आजीविका तक संकट में आ गई हैं।

अब ग्रामीण मांग कर रहे हैं कि पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए, सभी प्रभावितों को उचित मुआवजा और पुनर्वास दिया जाए, और बेरोजगार युवाओं को दीर्घकालीन रोजगार सुनिश्चित किया जाए। यदि यह नहीं किया गया तो वे आंदोलन को और तेज करेंगे।


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कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन

कंपनी और प्रशासन की यह कार्रवाई कई कानूनों का सीधा उल्लंघन करती है:

  1. भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम 2013 – किसी भी भूमि अधिग्रहण के पहले ग्राम सभा की सहमति, जनसुनवाई और सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन आवश्यक है।
  2. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 300A – नागरिकों के संपत्ति के अधिकार की रक्षा करता है।
  3. मानवाधिकार कानून – किसी भी व्यक्ति को बिना मुआवजा और पुनर्वास के विस्थापित नहीं किया जा सकता।

प्रशासन की चुप्पी और पुलिस बल का दमनकारी प्रयोग

इस भूमि पूजन कार्यक्रम के दौरान प्रशासन की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। ना ही किसी अधिकारी ने स्पष्ट जानकारी दी, और ना ही किसी मांग पर कोई प्रतिक्रिया दी गई। इसके विपरीत, बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात कर ग्रामीणों की आवाज को दबाने की कोशिश की गई।

महिलाएं जब विरोध करने पहुंचीं, तो उन्हें बलपूर्वक पीछे किया गया। एक महिला ग्रामीण ने कहा, “हम सिर्फ पूछना चाह रहे थे कि हमारी जमीन पर कब्जा क्यों हो रहा है, लेकिन पुलिस ने हमें डराया और धमकाया।”

Bandha Coal Block : कंपनी और प्रशासन का तानाशाही

ग्रामीणों की मुख्य मांगें

  1. सभी प्रभावित परिवारों को उचित मुआवजा प्रदान किया जाए।
  2. पुनर्वास की पारदर्शी योजना बनाई जाए।
  3. जिनका नाम विस्थापित सूची में नहीं है, उन्हें जोड़ा जाए।
  4. भूमि पूजन और निर्माण कार्य पर रोक लगाई जाए जब तक सभी प्रक्रिया पूरी न हो।
  5. कंपनी और प्रशासन की कार्रवाई की निष्पक्ष जांच हो।

EMIL कंपनी का पक्ष क्या है?

कंपनी की ओर से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है, लेकिन अनौपचारिक सूत्रों के अनुसार कंपनी का दावा है कि उन्हें केंद्र सरकार से Bandha Coal Block का संचालन करने की अनुमति है और वे सभी प्रक्रियाएं पूरी कर चुके हैं।

हालांकि, जमीनी हकीकत इसके ठीक विपरीत है। न मुआवजा दिया गया, न पुनर्वास की कोई झलक है, और न ही कोई सार्वजनिक सूचना उपलब्ध कराई गई है।


Bandha Coal Block: विकास की आड़ में विनाश की पटकथा?

यह सवाल अब उठना लाज़मी है कि क्या Bandha Coal Block में जो हो रहा है वह “विकास” की श्रेणी में आता है या यह कुछ लोगों की आर्थिक भूख को शांत करने का साधन बन गया है?

यदि कोई परियोजना हजारों लोगों को उनके घर से बेघर कर दे, उन्हें रोजगार, ज़मीन और सामाजिक सुरक्षा से वंचित कर दे, तो उसे विकास कहना न सिर्फ असंवेदनशील है, बल्कि अन्यायपूर्ण भी है।


आगे की राह: ग्रामीणों का संघर्ष जारी

ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे सड़कों पर उतरेंगे और सामूहिक रूप से उच्च न्यायालय एवं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में याचिका दायर करेंगे। कई सामाजिक संगठन भी अब उनके समर्थन में आ चुके हैं।


निष्कर्ष

Bandha Coal Block की यह घटना एक बार फिर यह दिखाती है कि देश में जब विकास की परिभाषा सिर्फ कॉर्पोरेट लाभ तक सीमित रह जाए, तो आम जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। मुआवजा, पुनर्वास, जनसुनवाई जैसे कानूनी प्रावधानों को दरकिनार कर अगर जबरन जमीन ली जाएगी, तो यह लोकतंत्र नहीं तानाशाही कहलाएगी।

सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वे संवेदनशीलता के साथ इस मामले को देखें और Bandha Coal Block में न्यायसंगत प्रक्रिया अपनाते हुए सभी प्रभावित ग्रामीणों को उनका हक दें।


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